भगदड़
बुढ़िया चला रही थी चक्की, पूरे साठ वर्ष की पक्की।
दोने में थी रखी मिठाई, उस पर उड़कर मक्खी आई।
बुढिया बाँस उठाकर दौड़ी, बिल्ली खाने लगी पकौड़ी।
शब्दार्थ: चक्की – आटा पीसने या दाल दलने वाला पत्थर का एक यंत्र। दोना-पत्तों से बना कटोरी के आकार का बरतन।।
व्याख्या: कवि कहता है कि साठ वर्ष की एक बुढिया चक्की चला रही थी। तभी दोने में रखी मिठाई पर एक मक्खी आकर बैठ गई। बुढ़िया बाँस उठाकर मक्खी को भगाने के लिए दौड़ी। जैसे ही बुढिया मक्खी को भगाने के लिए दौड़ी, एक बिल्ली पकौड़ी खाने लगी।
झपटी बुढ़िया घर के अंदर, कुत्ता भागा रोटी लेकर।
बुढिया तब फिर निकली बाहर, बकरा घुसा तुरंत ही भीतर।
बुढ़िया चली, गिर गया मटका, तब तक वह बकरा भी सटका।
बुढ़िया बैठ गई तब थककर, सौंप दिया बिल्ली को ही घर।
शब्दार्थ: मटका-मिट्टी का बड़ा घड़ा, जिसका मुख चौड़ा होता है।
व्याख्या: उपर्युक्त पंक्तियों में कवि कहता है कि बुढिया जैसे ही घर के अंदर गई, कुत्ता रोटी लेकर भाग खड़ा हुआ। यह देख बुढिया बाहर निकली, तो बकरा तुरंत ही घर के अंदर घुस गया। बुढिया बकरे को भगाने के लिए चली तो वह मटके से टकरा गई जिससे मटका गिर गया। मटका गिरते ही बकरा भाग खड़ा हुआ। तब बुढ़िया थककर बैठ गई और बिल्ली को ही पूरा घर सौंप दिया।
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