बंदर और गिलहरी


एक बंदर पेड़ पर बैठा था। उसकी पूँछ काफ़ी लंबी थी और जमीन तक लटक रही थी। एक गिलहरी ने बंदर की पूँछ को देखा। उसने सोचा कि यह कोई झूला है। वह उस पर चढ़कर झूलने लगी। बंदर को गुदगुदी होने लगी। उसने गिलहरी से हँसकर कहा कि उसे गुदगुदी हो रही है। इस पर गिलहरी चौंक गई। उसने बंदर से कहा कि यह तुम हो बंदर भैया, मैं तो समझ रही थी कि कोई झूला है। मुझे तो बड़ा मज़ा आ रहा था। यह कहकर हँसती हुई गिलहरी पेड़ की डाल पर चढ़ गई।

शब्दार्थ : ज़मीन-धरती। मज़ा-आनंद।


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